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फिर से नया साल आ गया हम लाल लहू से जाने जाते हैं। जाने क्यों.... दुःख सुख स्त्री एक स्त्री के भीतर कहीं दूर तक अपना सुरंग रचती चली आ रही है जाने कितनी पीढ़ियों से" (इसी कविता से) सफलता-असफलता से बेपरहवाह आगे बढ़ते चले जाने की कविता जाने दो छोड़ो

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